भारतीय दंड संहिता की कुछ मुख्य धाराएं
आपराधिक धमकी या आपराधिक अभित्रास
(Criminal Intimidation)
धारा 503
जो कोई -- किसी अन्य व्यक्ति के शरीर, ख्याति या सम्पति को,या
किसी ऐसे व्यक्ति शरीर, ख्याति को,जिसमे वह व्यक्ति हितबृद्ध (interested) हो,
कोई क्षति करने की धमकी उस अन्य व्यक्ति को इस आशय से देता है कि उसे सावधान किया जाये या
उससे ऐसी धमकी निष्पादन का बचाव करने के साधन सरूप कोई ऐसा कार्य कराया जाये
जिसे करने के लिये वह क़ानूनी रूप से बाध्य न हो या
किसी ऐसे कार्य को करने का लोप कराया जाए
जिसे करने के लिए वह क़ानूनी रूप से अधिकारी हो,
वह आपराधिक अभित्रास करता है
उदाहरण के लिए --- क सिविल वाद चलाने से बचने के लिए ख को उत्प्रेरित करने के प्रयोजन से ख के घर को जलाने की धमकी देता है | क आपराधिक अभित्रास का दोषी है |
आपराधिक षड्यंत्र
(Criminal conspiracy)
धारा 120 (क)
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति (i) किसी गैर कानूनी कार्य को या (ii) इस धारा के किसी ऐसे कार्य को जो अवैध नहीं है किन्तु अवैध साधनों द्वारा करने या करवाने को सहमत होते है तब ऐसी सहमति आपराधिक षड्यंत्र कहलाती है
कूटकरण का अर्थ
(Counterfeit)
धारा 28
भारतीय दंड संहिता की धारा 28 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश दिखना इस आशय से कारित करता है कि वह उस सादृश्य से छल / कपट करे, या यह संभाव्य जानते हुए करता है कि तद्द्वारा छल / कपट किया जाएगा, उसे कूटकरण करना कहा जाता है।
स्पष्टीकरण 1 – कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि नकल ठीक वैसी ही हो।
स्पष्टीकरण 2 – जब कि कोई व्यक्ति एक चीज को दूसरी चीज के सदृश कर दे और सादृश्य ऐसा है कि तद्द्वारा किसी व्यक्ति को धोखा हो सकता हो, तो जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न किया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि जो व्यक्ति एक चीज की दूसरी चीज के इस प्रकार सदृश बनाता है उसका आशय उस सादृश्य द्वारा छल / कपट करने का था या वह यह सम्भाव्य जानता था कि तद्द्वारा छल / कपट किया जाएगा।
क्षति (Injury)
धारा 44
भारतीय दंड संहिता की धारा 44 के अनुसार, क्षति शब्द किसी प्रकार की चोट का द्योतक है, जो किसी व्यक्ति के शरीर, मन, ख्याति या सम्पत्ति को गैर-क़ानूनी रूप से पहुँचाई गयी हो।
चल सम्पति
(Movable Property)
धारा 22
भारतीय दंड संहिता की धारा 22 के अनुसार, चल सम्पत्ति शब्दों से यह आशयित है कि इनके अन्तर्गत हर भांति की मूर्त सम्पत्ति आती है, किन्तु भूमि और वे चीजें, जो भू-बद्ध हों या भू-बद्ध किसी चीज से स्थायी रूप से जकड़ी हुई हों, इनके अन्तर्गत नहीं आती। अतः यह धरा केवल मूर्त सम्पति से व्यहवार करती हे भूमि और भूमि से लगी वस्तुए इसमें
शामिल नहीं होती |
लोक सेवक
(Public Servant)
धारा 21
भारतीय दंड संहिता की धारा 21 के अनुसार, लोक सेवक शब्द ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जो एतस्मिन् पश्चात् निम्नलिखित वर्णनों में से किसी में आता है, अर्थात्: -
- भारत की सेना, नौ सेना या वायु सेना का हर आयुक्त अधिकारी;
- हर न्यायाधीश जिसके अन्तर्गत ऐसे कोई भी व्यक्ति आता है जो किन्हीं अधिनिर्णयिक कॄत्यों का चाहे स्वयं या व्यक्तियों के किसी निकाय के सदस्य के रूप में निर्वहन करने के लिए विधि द्वारा सशक्त किया गया हो;
- न्यायालय का हर अधिकारी (जिसके अन्तर्गत समापक, रिसीवर या कमिश्नर आता है) जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य हो कि वह विधि या तथ्य के किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे, या कोई दस्तावेज बनाए या अधिप्रमाणीकॄत करे;
- किसी न्यायालय या लोक सेवक की सहायता करने वाला हर जूरी-सदस्य, आंकलन करने वाला या पंचायत का सदस्य;
- हर मध्यस्थ या अन्य व्यक्ति, जिसे किसी न्यायालय द्वारा, या किसी अन्य सक्षम लोक प्राधिकारी द्वारा, कोई मामला या विषय, निर्णय या रिपोर्ट के लिए निर्देशित किया गया हो;
- हर व्यक्ति जो किसी ऐसे पद को धारण करता हो, जिसके आधार पर वह किसी व्यक्ति को कारावास में करने या रखने के लिए सशक्त हो;
- सरकार का हर अधिकारी जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य हो कि वह अपराधों का निवारण करे, अपराधों की सूचना दे, अपराधियों को न्याय के लिए उपस्थित करे, या जनता के स्वास्थ्य, सुरक्षा या सुविधा की संरक्षा करे;
- हर अधिकारी जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य हो कि वह सरकार की ओर से किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे, व्यय करे, या सरकार की ओर से कोई सर्वेक्षण, मूल्यांकन या अनुबंध करे, या किसी राजस्व आदेशिका का निष्पादन करे, या सरकार के धन-संबंधी हितों पर प्रभाव डालने वाले किसी मामले में अन्वेषण या रिपोर्ट करे या सरकार के धन संबंधी हितों से संबंधित किसी दस्तावेज को बनाए, अधिप्रमाणीकॄत करे या रखे, या सरकार धन-संबंधी हितों की संरक्षा के लिए किसी विधि के अतिक्रमण को रोके;
- हर अधिकारी, जिसका ऐसे अधिकारी के नाते यह कर्तव्य हो कि वह किसी ग्राम, नगर या जिले के किसी धर्मनिरपेक्ष सामान्य प्रयोजन के लिए किसी सम्पत्ति को ग्रहण करे, प्राप्त करे, रखे या व्यय करे, कोई सर्वेक्षण या मूल्यांकन करे, या कोई आरोपित राशि या कर उद्गॄहीत करे, या किसी ग्राम, नगर या जिले के लोगों के अधिकारों के सुनिश्चित करने के लिए कोई दस्तावेज बनाए, अधिप्रमाणीकॄत करे या रखे;
- हर व्यक्ति जो कोई ऐसा पद धारण किए हो जिसके आधार पर वह निर्वाचक नामावली तैयार करने, प्रकाशित करने, बनाए रखने, या पुनरीक्षित करने के लिए या निर्वाचन या निर्वाचन के किसी भाग को संचालित करने के लिए सशक्त हो;
- हर व्यक्ति, जो-
क. सरकार की सेवा या वेतन में हो, या किसी लोक कर्तव्य के पालन के लिए सरकार से फीस या कमीशन के रूप में पारिश्रमिक पाता हो;
ख. स्थानीय प्राधिकारी की, अथवा केन्द्र, प्रान्त या राज्य के अधिनियम के द्वारा या अधीन स्थापित निगम की अथवा कम्पनी अधिनियम, 1956 (1956 का 1) की धारा 617 में यथा परिभाषित सरकारी कम्पनी की, सेवा या वेतन में हो।
स्पष्टीकरण – उक्त वर्णन में से किसी में भी आने वाला व्यक्ति लोक सेवक हे चाहे वह सरकार द्वारा नियुक्त किये गए हो या नहीं|
सदोष अभिलाभ / हानि
(Wrongful Gain and wrongful loss)
if you have any doubt, please let me know